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राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (एनएएसी)
राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद, एक स्वायत्त निकाय, को राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 और कार्रवाई कार्यक्रम (पीओए), 1992 जिसमें भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने पर विशेष बल दिया गया है, द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसरण में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 1994 में स्थापित की गई थी। राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद का मुख्य अधिदेश, जैसा कि इसके संगम ज्ञापन में परिकल्पना की गई है, उच्चतर शिक्षा की संस्थाओं, विश्वविद्यालयों और कालेजों अथवा उनके एक या अधिक एककों अर्थात विभागों, स्कूलों, संस्थाओं, कार्यक्रमों आदि का मूल्यांकन करना और उन्हें प्रत्यायित करना है। राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद अपनी सामान्य परिषद और कार्यकारी समिति जिसमें शैक्षिक प्रशासक नीति निर्माता और उच्चतर शिक्षा प्रणाली के सभी वर्गों से वरिष्ठ शिक्षाविद शामिल होते हैं, के माध्यम से कार्य करती है।
राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद द्वारा 1 अप्रैल, 2007 से लागू की गई नई पद्धति के अंतर्गत उच्चतर शिक्षा संस्थाओं का दो चरणीय दृष्टिकोण के द्वारा मूल्यांकन किया जाता है तथा उन्हें प्रत्यायित किया जाता है। प्रथम चरण संस्था के गुणवत्ता मूल्यांकन के लिए संस्थागत पात्रता (आईईक्यूए) प्राप्त करना अपेक्षित है और दूसरे चरण में प्रत्यायित संस्थाओं के लिए 'क', 'ख', 'ग' ग्रेडों के अंतर्गत संस्थान का मूल्यांकन और प्रत्यायन करना है और डी ग्रेड उनके लिए है जो अभी तक प्रत्यायित नहीं। राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद ने सात मानदण्डों की पहचान की है- i. पाठ्यचर्या पहलू, ii शिक्षण अध्ययन और मूल्यांकन, iii. अनुसंधान, परामर्श तथा विस्तार, - iv. अवसंरचना तथा अध्ययन संसाधन, - v. छात्र सहायता और प्रगति, - vi. अभिशासन और नेतृत्व तथा - vii. इसकी मूल्यांकन प्रक्रिया के लिए आधार के रूप में नवाचारी प्रक्रियाएं।
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