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योजनाएं
कौशल विकास के लिए समन्वित कार्रवाई के तहत पोलिटेक्निक पर उप-मिशन
1. | असेवित और अल्पसेवित जिलों में नए पोलिटेक्निकों की स्थापना |
2. | पोलिटेक्निकों के माध्यम से समुदाय विकास योजना |
3. | पोलिटेक्निकों में महिला छात्रावासों का निर्माण |
4. | पोलिटेक्निको का उन्नयन |
अनुसंधान एवं नवाचार
1. | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रगामी क्षेत्रों में उत्कृष्टता केन्द्रों की स्थापना (फास्ट) – संशोधित फार्मेट |
2. | अभिकल्पन (डिजाइन) नवाचार केन्द्र की स्थापना |
1. प्रशिक्षुकता प्रशिक्षण योजना
प्रशिक्षुकता अधिनियम, 1961 के तहत प्रशिक्षुकता योजना का कार्यान्वयन एक सांविधिक आवश्यकता है। प्रशिक्षुकता प्रशिक्षण योजना प्रशिक्षुकता अधिनियम, 1961 के तहत गठित शीर्ष सांविधिक निकाय – केन्द्रीय प्रशिक्षुकता परिषद द्वारा निर्धारित नीति और दिशा-निर्देश के अनुसार लगभग 10,000 औद्योगिक स्थापनाओं/संगठनों में स्नातक इंजीयिर, डिप्लोमा धारक (तकनीशियनों) और 10+2 व्यावसायिक शिक्षा उत्तीर्णों को व्यावहारिक प्रशिक्षण के अवसर उपलब्ध कराती है।
योजना का मूल उद्देश्य नव स्नातक इंजीनियरों, डिप्लोमा धारकों और 10+2 व्यावसायिक शिक्षा उत्तीर्णों के तकनीकी कौशल को बढ़ाना है ताकि उद्योग की आवश्यकताओं के अनुसार उनकी उपयुक्तता को बनाया जा सके और अब तक प्रायोगिक प्रशिक्षण में रह गए किसी अंतराल को भी पूरा करना है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय (उच्चतर शिक्षा विभाग) द्वारा पूर्णत: वित्त पोषित चार क्षेत्रीय प्रशिक्षुकता बोर्ड/व्यावहारिक प्रशिक्षक (बीओएटी/बीओपीटी) मुम्बई, कोलकाता, कानपुर और चेन्नई में स्थित है। इन्हें प्रशिक्षुकता अधिनियम, 1961 के तहत अपने संबंधित क्षेत्रों में प्रशिक्षुकता योजना लागू करने के लिए प्राधिकृत किया गया है।
अधिनियम के तहत प्रशिक्षुकता प्रशिक्षण की अवधि एक वर्ष है। प्रशिक्षुकों को हर महीने वजीफा दिया जाता है जिसे केन्द्र सरकार और नियोक्ता के बीच 50:50 के आधार पर बांटा जाता है। इस स्नातक इंजीनियरों तकनीशियनों और 10+2 व्यावसायिक शिक्षा उत्तीर्णों को प्रशिक्षुक के रूप में दिए जाने वाले वजीफे की दर क्रमश: 4984/- रूपए, 3542/- रूपए और 2758/- रूपए प्रति माह है। उद्योग स्थापना/संगठनों द्वारा प्रशिक्षुकता प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे प्रशिक्षुकों को पहली बार में ही पूरा वजीफा दे दिया जाता है बाद में प्रशिक्षुक संबंधित बोट/बीओपीटी के माध्यम से केन्द्र सरकार से 50 प्रतिशत प्रतिपूर्ति का दावा करते हैं।
अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें: बीओएटी-मुम्बिई (link is external), बीओएटी-कानपुर (link is external), बीओएटी-चेन्नई (link is external), बीओएटी-कोलकाता (link is external)
2. दूरस्थ शिक्षा और वेब आधारित शिक्षण (एनपीटीईएल) के लिए सहायता
प्रौद्योगिकी के प्रयोग के माध्यम से तकनीकी शिक्षा क्षेत्र में शिक्षण प्रभावकारिता को बढ़ाने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने वर्ष 2003 में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी समर्थित शिक्षण कार्यक्रम (एनपीटीईएल) नामक परियोजना शुरू की। इस कार्यक्रम के तहत पाठ्यचर्या आधारित वीडियो पाठ्यक्रम (कम-से-कम 100) और वेब आधारित ई-पाठ्यक्रमों (कम से कम 115) के निर्माण द्वारा, जिन्हें भागीदारी संस्थाओं के रूप में सात आईआईटी-दिल्ली, बम्बई, मद्रास, कानपुर, खड्गपुर, गुवाहाटी, रूड़की और आईआईएससी बंगलौर द्वारा 20.47 करोड़ के परिव्यय के साथ तैयार किया जाना था, देश में गुणवत्तायुक्त इंजीनियरिंग शिक्षा की वृद्धि करना था।
एनपीटीईएल के पहले चरण में परियोजना ने अवर-स्नातक पाठ्यचर्या के पांच मुख्य इंजीनियरिंग ब्रांचो नामत: सिविल, कम्प्यूटर साईंस, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रानिक्स एंड कम्यूनिकेशन और मैकेनिकल इंजीनियरिंग के मुख्य पाठ्यक्रमों को समाविष्ट किया। इन पाठ्यक्रमों को इलेक्ट्रानिक्स, न्यूमेरिकल मैथड आदि, जो सभी इंजीनियरिंग छात्रों के लिए अनिवार्य होते हैं, जैसे मूल विज्ञान और प्रबंधन कार्यक्रम, भाषाएं और अन्य आधारभूत पाठ्यक्रमों द्वारा पूरा किया जाता है। इंजीनियरिंग में मॉडल एआईसीटीई पाठ्यक्रम जिसे अन्ना विश्वविद्यालय, विश्वेश्वर्या तकनीकी विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू तकनीकी विश्वविद्यालय, जैसी प्रमुख संबद्ध विश्वविद्यालयों द्वारा अपनाए गए है, इन पाठ्यक्रम कंटेंट का डिजाइन करते रहे हैं।
इस कार्यक्रम को तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री, स्व. श्री अर्जुन सिंह द्वारा दिनांक 3 सितम्बर, 2006 को आईआईटी – मद्रास से विधिवत् रूप से प्रारंभ किया गया। कंटेंट्स आईआईटी-मद्रास द्वारा अनुरक्षित वेबसाइट http://nptel.ac.in (link is external) के माध्यम से भारत और विदेश में हर व्यक्ति को उपलब्ध कराए गए हैं। एकलव्य चैनल के माध्यम से इस समय वीडियो लेक्चर प्रसारित किए जा रहे हैं और देश में लगभग 50 इंजीनियरिंग संस्थाओं ने अपने परसिर में सिग्नल प्राप्त करने के लिए डिश एंटीना के साथ अपने रिसीवर स्थापित किए हैं।
परियोजना में 500 से अधिक संकायों के भाग लेने की उम्मीद है और इस कार्यक्रम के लाभार्थी देश में सभी इंजीनियरिंग और भौतिक विज्ञान के अवर स्नातक/ स्नातकोत्तर छात्र; भारत में विज्ञान और इंजीनियरिंग विश्वविद्यालयों के सभी शिक्षक/संकाय होंगे। परियोजना का उद्देश्य दिनांक 3.9.2006 को शुरू किए कार्यक्रम के आधार पर एनपीटीईएल के प्रथम चरण में कार्यक्रम को बनाना और भारत में सर्वोत्तम शैक्षणिक सिद्धांतों को प्रयोग करते हुए ऑनलाइन कंटेंट और विज्ञान एवं इंजीनियरिंग संकाय सदस्यों के साथ बात-चीत का निर्माण करना था।
3. भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी डिजिटल पुस्तकालय (आईएनडीईएसटी-एआईसीटीई) संघ
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ‘‘भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी डिजिटल पुस्तकालय (आईएनडीईएसटी-एआईसीटीई) संघ’’ की स्थापना की है। मंत्रालय केन्द्र वित्त पोषित संस्थाओं को इलेक्ट्रानिक्स संसाधनों और डाटाबेस को एक्सेस करने के लिए निधि उपलब्ध कराता है। खुले अनुपात के तहत इलेक्ट्रानिक संसाधनों के लिए संघ आधारित लाभ भी सभी शैक्षणिक संस्थाओं को दिए जाते हैं। एआईसीटीई अनुमोदित सरकारी/सरकारी सहायता प्राप्त इंजीनियंरिंग कॉलेज एआईसीटीई की सहायता से चयनित इलेक्ट्रानिक संसाधनों को एक्सेस कर रह रहे हैं और बहुत से अन्य इंजीनियरिंग कॉलेज और संस्थाएं ई-जर्नल के लाभ लेने के लिए सदस्य बनने हेतु मोल-भाव करने में लगे हुए हैं।
4. राष्ट्रीय भू-कम्प इंजीनियरिंग शिक्षा कार्यक्रम (एनपीईईई)
जनवरी, 2001 में आए गुजरात भू-कम्प और वर्ष 2000 में ओडिशा चक्रवात के बाद वर्ष 2003 में एमएचआरडी द्वारा सात आईआईटी और आईआईएससी, बंगलौर संसाधन संस्थानों में एक व्यापक राष्ट्रीय भकम्प इंजीनियरिंग शिक्षा (एनपीईईई) की शुरूआत की गई। आईआईटी-कानपुर समन्वयक संस्थान है। यह कार्यक्रम सभी मान्यता प्राप्त इंजीनियरिंग कॉलेजों/पोलिटेक्निकों और वास्तुकला स्कूलों (चाहे वे सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं या नहीं) जो संबंधित शैक्षणिक डिग्री या डिप्लोमा कार्यक्रम चलाते हैं के लिए खुला है। एनपीईईई का मुख्य उद्देश्य (क) इंजीनियरिंग कॉलेज, पोलिटेक्निक और वास्तुकला स्कूलों के अध्यापकों को प्रशिक्षित करना (ख) उपयुक्त पाठ्यचर्या का विकास करना है।
कुछ देश की अग्रणी संस्थानों ने अन्य संस्थाओं में संकाय विकास में मदद की है। इससे एक केन्द्रीय वित्त पोषित कार्यक्रम के तहत अल्प और दीर्घ अवधि प्रशिक्षण के माध्यम से इंजीनियरिंग कॉलेजों को प्रशिक्षित करने में मदद मिलेगी। राष्ट्रीय उपक्रम के तहत कार्यकलापों में निम्नलिखित शामिल है:-
लघु अवधि क्रेश कार्यक्रमों और दीर्घ अवधि कार्यक्रमों के माध्यम से संकाय का विकास।
संसाधन सामग्री और/पाठ्यक्रमों का निर्माण।
तकनीकी संस्थाओं में पुस्तकालय संसाधनों का विकास।
देश में अग्रणी संस्थाओं और अन्य संस्थाओं के बीच संकाय आदान-प्रदान और शिक्षा-उद्योग आदान-प्रदान।
अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान जहां विदेशों से ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञ शिक्षण और अनुसंधान के लिए अलग-अलग अवधि में भारत का दौरा कर सकें और इस विषय में भारत के युवा अध्यापक/पेशेवर शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में अपना समय दे सकें।
विभिन्न इंजीनियरी संस्थाओं में आधारभूत शिक्षण प्रयोगशालाओं को निधिबद्ध किया जा सके। अग्रणी संस्थाओं में प्रस्तावित कार्यक्रम प्रमुख अनुसंधान प्रयोगशालाओं के विकास के लिए निधि प्रदान कर सके जिनका अन्य संस्थाओं द्वारा भी प्रयोग किया जा सके।
कार्यक्रम के पहले चरण के माध्यम से देश में भूकम्प इंजीनियरी क्षमता निर्माध और भविष्य में बिना परिहार्य जान-माल की हानि के भू-कंपों का सामना करने के लिए देश की तैयारी में वृद्धि करना है। पहला चरण जूनख् 2007 में पूरा हो गया है। www.nicee.org/npeee (link is external)
5. प्रौद्योगिकी विकास मिशन
वर्ष 1993 में सभी आईआईटी और आईआईएसई में प्रौद्योगिकी विकास मिशन की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य उद्योगों की सीधी भागीदारी और प्रतिभागिता के साथ प्रौद्योगिकी विकास की दिशा में दृढ़ राष्ट्रीय प्रयास करना है। राष्ट्रीय महत्व के क्षेत्र में सुपरिभाषित लक्ष्यों, मील के पत्थर और डिलिवरेब्लस वाले कुछ मिशन परियोजनाओं को चुना गया था। अधिकांश मिशन परियोजनाओं में दो या अधिक शैक्षिक संस्थाओं और उद्योगों को समाहित किया गया था। इन मिशनों का निधियन निम्नानुसार किया गया था:
मानव संसाणन विकास मंत्रालय ने इन परियोजनाओं को 50.00 करोड़ रूपए की निधि प्रदान की।
उद्योग भागीदारों ने 15 करोड़ रूपए के उपकरण, उपस्कर और जनशक्ति के रूप में सहायता के अतिरिक्त 9.00 करोड़ रूपए का योगदान दिया।
मिशन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उद्योग-संस्थान पारस्परिकता को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ अद्यतन प्रौद्योगिकी के विकास में उद्योग की सहायता करना सरकार की ओर से एक महत्वपूर्ण प्रयास था।
टीडीएम-I की नई दिल्ली में 06 अगस्त, 2006 को हुई योजना आयोग की राष्ट्रीय निगरानी समिति की बैठक में बड़ी प्रशंसा की गई। टीडीएम-I उद्योग को कतिपय प्रौद्योगिकियों के विकास और अंतरण में सफल रहा जैसे:-
- आटोमेशन ऑफ पावर डिस्ट्रिब्यूशन
- एड्स के लिए इम्यूनो डायग्नोस्टिक टेस्ट
- हेप्टिटाइटस-बी का वेक्सीन
- सुपरक्रिटीकल फ्ल्यूड एक्ट्रेक्शन टेक्नालॉजी
- अनाज के लिए नियंत्रित वातावरण भंडारण प्रौद्योगिकी पहला 50 कि.ग्रा. पे लोड रोबोट
- स्वचालित निगरानी तंत्र
- स्क्यूज कास्टिंग टेक्नालॉजी फॉर मैटल मेटरिक्स काम्पोजिट पिस्टन
- कृषि उत्पादों के लिए वातावरण अनुकूल वाष्प संपीडन ताप समर्थित ड्रायर
अधिकतम डिलिवरेबल्स को प्राप्त कर लिया गया था। आईआईटी और आईआईएससी में उद्योग प्रायोजित अनुसंधान में हुई उत्रोत्तर वृद्धि यह सुनिश्चित करती है कि टीडीएम-I कार्यक्रम ने वर्तमान उद्योग संबंधी प्रौद्योगिकी समस्याओं का समाधान करने और नई प्रौद्योगिकी एवं उत्पाद तैयार करने में उनकी मदद करने में भारतीय शैक्षणिक संस्थाओ में एक क्षमता में विश्वास का वातावरण निर्मित किया है। टीडीएम-I के कुछ महत्वपूर्ण लाभा थे:
- पहली बार इस प्रकार के मिशन उन्मुखी कार्यक्रमों पर उद्योग और आईआईटी ने एक साथ कार्य किया।
- उद्योग प्रौद्योगिकी समस्याओं का समाधान करने और नए उत्पादों का सफलतापूर्वक निर्माण करने में आईआईटी और आईआईएससी की क्षमता से सहमत था।
- आईआईटी और आईआईएससी में उद्योग-प्रायोजित अनुसंधान में वृद्धि हुई।
- इन शीर्ष संस्थानों के बीच शैक्षणिक सहयोग में वृद्धि हुई।
विदेशी छात्रों को सीधा प्रवेश
एमएचआरडी की इस योजना उद्देश्य भारतीय संस्थाओं में दी जाने वाली उच्च गुणवत्तायुक्त तकनीकी शिक्षा का भाग बनने के लिए वैश्विक तकनीकी शिक्षा के इच्छुक छात्रों की मदद करना। प्रमुखत: इंजीनियरी कार्यक्रम में प्रवेश पर लक्षित यह योजना 2001 में शुरू की गई थी और तब से योजना के तहत देश की एनआईटी, आईआईटी और अन्य प्रमुख संस्थाओं में प्रवेश के अवसर दिए हैं। यह योजना एनआरआई/पीआईओ के साथ-साथ विदेशी नागरिकों के लिए लागू है।
नि:शक्तों को तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए मौजूदा पोलिटेक्निकों के उन्नयन की योजना।
इस योजना के गठन का उद्देश्य नि:शक्तों को तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से मुख्यधारा में जोड़ना है। योजना के तहत देश के विभिन्न भागों में स्थित 50 मौजूदा पोलिटेक्निकों को क्रमोन्यन के लिए चुना गया है ताकि वे नि:शक्तों के लिए तकनीकी/व्यावसायिक और सतत शिक्षा कार्यक्रम शुरू करने में समर्थ बन सकें। योजना का लक्ष्य प्रत्येक वर्ष औपचारिक डिप्लोमा स्तर पाठ्यक्रम में लगभग 1250 नि:शक्त छात्रों और अल्पावधि तकनीकी/व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में 5000 छात्रों को लाभ पहुंचाना है। चयनित पोलिटेक्निक नि:शक्त छात्रों के शिक्षा और प्रशिक्षण, उपयोगिता और नियोज्यता से संबंधित अनुसंधान और ट्रेसर अध्ययन पढ़ाई करवाएंगें और संस्थानिक वातावरण का निर्माण करेंगे जो क्रमश: भेदभाव एवं विषमता को कम करेंगे और नि:शक्तों को तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़नेका काम करेंगे। शुरूआत में कुछ पोलिटेक्निक औपचारिक और अनौपचारिक पाठ्यक्रम चलाने में कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ा था।
20 नए आईआईआईटी की स्थापना
भारतीय आईटी उद्योग और घरेलू आईटी मार्केट के विकास द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों का समाधान करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार बिना किसी लाभ के आधार पर सार्वजनिक-निजी-पद्धति (एन-पीपीपी) में 20 भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों की स्थापना पर विचार कर रहा है। आईआईआईटी की स्थापना के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय, जहां आईआईआईटी स्थापित की जानी है वहां भी राज्य सरकार और उद्योग भागीदार होंगे।
आईआईआईटी की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य उस शिक्षा का आदर्श स्थापित करना है जो आईटी क्षेत्र में सर्वोत्तम मानव संसाधनों का निर्माण कर सके और विभिन्न क्षेत्रों में आईटी के बहुआयामी पहलूओं का प्रयोग कर सके। जबकि इन आईआईआईटी द्वारा तैयार किए गए छात्रों की संख्या बहुत कम होगी परन्तु इनका सृजन (निर्माण) विशाल होगा।
- पीपीपी पद्धति में 20 नए आईआईआईटी की स्थापना योजना
- आईआईटी-दिल्ली में 18 मार्च, 2011 को आयोजित पीपीपी-पद्धति में 20 आईआईआईटी की स्थापना पर हुई कार्यशाला की गई चर्चा का रिकार्ड
- मसौदा संगम-ज्ञापन और आईआईआईटी के नियम
- पीपीपी-पद्धति में 20 नए आईआईआईटी की स्थापना के संबंध में भारत के राष्ट्रपति: राज्य के राज्यपाल और उद्योग भागीदार के बीच करार समझौते का मसौदा
- आईआईआईटी की स्थापना के लिए सरकार/संघ राज्य क्षेत्रों से मांगे गए प्रस्तावों का मसौदा फार्मेट
- पीपीपी-पद्धति में आईआईआईटी की स्थापना के लिए उद्योग भागीदारों के चयन हेतु मसौदा सिफारिशें
- पीपीपी-पद्धति में नए आईआईआईटी की स्थापना के लिए राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्रों से प्राप्त प्रस्तावों के चयन हेतु मसौदा मापदंड
- नए आईआईआईटी की स्थापना के लिए डीपीआर
अनुसंधान और नवाचार
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रगामी क्षेत्र में उत्कृष्टता केन्द्रों की स्थापना
उत्कृष्टता केन्द्र (सीओई) संस्थानों में उच्च गुणवत्तायुक्त शोधकर्ताओं और अनुसंधानकर्ताओं या कतिपय कंपनियों में अनुसंधान-उपभोक्ताओं या नई एवं उभरती प्रौद्योगिकी के संगठनों, राष्ट्रीय विकास लक्ष्य से संबंधित बहु-विषयक और रूपांतरित अनुसंधान की टीम के बीच सहयोग्यात्मक कार्यकलाप होंगे।