राष्ट्र निर्माण के लक्ष्यस के अनुरूप भारत सभी बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस दिशा में भारतीय संसद ने 6-14 वर्ष आयु समूह के प्रत्येक बच्चेो को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करने के लिए एक विधान अधिनियमित किया है, जो दिनांक 1 अप्रैल, 2010 से लागू हुआ। माध्य़मिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने के लिए राष्ट्रीय माध्यिमिक शिक्षा अभियान अभी हाल ही में प्रारंभ किया गया है। इसके साथ ही उच्चतर एवं तकनीकी शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ एवं व्यापक बनाने के प्रयास भी किए जा रहे है।

मौजूदा क्षमताओं के आधार पर तथा बात को मान्यकता प्रदान करते हुए कि स्वंतंत्रता प्राप्ति के बाद शिक्षा संस्थापओं के वृहत नेटवर्क ने राष्ट्रे निर्माण में अत्यकधिक योगदान दिया है; राष्ट्रक उच्च्तर शिक्षा में उत्कृशष्टंता केन्द्रों के विस्ता्र एवं स्थामपना का दूसरा चरण प्रारंभ करने जा रहा है। यह अभिकल्प्ना की गई है कि इस वर्णक्रम के दोनों सिरों नामत: प्रारंभिक शिक्षा एवं उच्च‍तर/तकनीकी शिक्षा के सुदृढ़ीकरण से शिक्षा में विस्ता र, समावेशन एवं उत्कृरष्टसता के लक्ष्यों् को प्राप्तव किया जा सकता है।

केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (सीएबीई) शिक्षा के क्षेत्र में केन्द्र एवं राज्य सरकारों को परामर्श देने वाला शीर्ष परामर्शी निकाय है। अभी आल ही के वर्षों में कतिपय महत्वहपूर्ण समितियों एवं आयोगों द्वारा शिक्षा पर विचार-विमर्श किया गया है। उच्चतर शिक्षा पर राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की रिपोर्ट (2006) में सार्वजनिक निवेश के माध्य्म से सुदृढ़ सुधार एजेंडा का समर्थन गठित समिति (यशपाल समिति) ने शिक्षा संस्थाओं की बोद्धिक स्वांयत्ताव को संरक्षित करने तथा मौजूदा विनियामक निकायों के स्थाधन पर अथवा उनको समाहित करते हुए एक सर्व-समावेशी राष्ट्री य उच्चयतर शिक्षा एवं अनुसंधान आयोग (एनसीएचईआर) के गठन की अनुसंशा की है। इस रिपोर्ट में विश्वरविद्यालय की चर्चा एक ऐसे स्थाोन के तौर पर गई है जहां शिक्षण एवं अनुसंधान ज्ञान सृजन के दो स्तंंभ होते है और इन्हेंह साथ-साथ जारी रखा जाना चाहिए। विश्वविद्यालय द्वारा लोगों को व्याणवहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए, जो नए ज्ञान एवं सामाजिक तथा व्य क्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप हो। सबसे महत्व पूर्ण यह है कि विश्वाविद्यालय द्वारा विविध ज्ञान विकास का परिवेश प्रदान किया जाना चाहिए तथा ज्ञान का विखंडन नहीं होना चाहिए। इसलिए यह अनुशंसा की जाती है कि सामान्यकत: किसी एक विषय अथवा विशिष्ट विश्व विद्यालय की स्थावपना नहीं की जानी चाहिए। इस प्रकार का भी एक विचार दिया गया है कि अवर-स्नावतक कार्यक्रमों का पुनर्गठन किया जाना चाहिए ताकि विद्यार्थियों को पर्याप्ति गतिशीलता के साथ सभी पाठ्यक्रम क्षेत्रों में सुलभता के अवसर मिल सके।

सरकार ने इस रिपोर्ट की कुछ सिफारिशों के कार्यान्वोयन की दिशा में पहले ही कार्रवाई प्रारंभ कर दी है।